संगरोध के समय हम क्रिकेट प्रेमियों को सबसे ज़्यादा याद फैंटसी क्रिकेट की आ रही है। एक दौर ऐसा भी था जब तेंदुलकर, मैकग्राथ, द्रविड़, पॉंटिंग जैसे खिलाड़ी खेला करते थे। हमारे ज़हन में इन खिलाड़ियों को खेलता देखने जैसी कई यादें अभी भी ताज़ा हैं।
उस दिनों में एक ऐसी टीम हुआ करती थी जिनको हराना लगभग नामुमकिन सा था। सबसे कामयाब और सर्वश्रेष्ठ कप्तान जिनको हम ‘पंटर’ के नाम से जानते हैं। यह टीम 3 बार विश्व कप विजेता घोषित की गयी जिसमें से 2003 और 2007 में इसका नेतृत्व इन्हिने किया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं रिक्की थॉमस पॉंटिंग की जिन्होंने ऑस्ट्रेलिआई टीम को क्रिकेट के हर फ़ॉर्मेट में विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीम बना दिया था।
2003 से 2010 में ऑस्ट्रेलिया के सर्वश्रेष्ठ फैंटसी टीम होने के 5 मुख्य कारण:
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नेतृत्व भी है कला : रिक्की पॉंटिंग
रिक्की पॉंटिंग नेतृत्व करने के मामले में कलाकार थे, हमारे पास यह साबित करने के लिए कई तरह के उदाहरण हैं। किसी भी बड़ी गेम में जहाँ उनकी ज़रुरत पड़ती वे नज़र आते। 2003 के विश्व कप में उनके लगाए शतक ने भारत से गेम बिलकुल छीन लिया था और उसके बाद भारत में क्षमता नहीं रही। रिक्की हमेशा अपनी टीम की देख – रेख करते नज़र आते थी जब भी कोई टीम उनपर दबाव डालती थी।
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हेडेन – गिलक्रिस्ट: इन सलामी बल्लेबाज़ों को सलाम।
एडम गिलक्रिस्ट और मैथ्यू हेडेन, ये दोनों बल्लेबाज़ सीधा पातळ लोक से फ़ील्ड पर आकर जम जाते थे। दोनों मिल के 100 बनाते थे या इनमें से एक बड़ा खेल जाता था। दोनों का स्ट्रोक प्लेयर होना दूसरी टीम पर भारी पड़ता था क्योंकि हर ओवर में एक न एक बड़ा अंक ये हासिल कर लेते थे। सोच समझ के खेलना और विरोधी टीम पर दबदबा हासिल करने का इनका प्लान हमेशा कामयाब रहता था।
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फिनिशरों से भरा लाइन अप:
जब कभी भी विरोधी टीम ऑस्ट्रेलिया पर हावी होने लगती थी तब माइकल बेवन, माइकल हस्सी और जेम्स होप्स जैसे खिलाड़ी जो की इस समय के बेहतरीन चेज़र हुआ करते थे, खेल का पासा ही पलट देते थे और पक्का कर लेते थे की टीम ज़्यादातर मैच जीत जाये।
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पहले नंबर से ग्यारवे नंबर तक, बस विजेता :
हर खिलाड़ी को टीम में अपनी ज़िम्मेदारी और अपना कर्त्तव्य बखूबी मालूम था। पॉंटिंग का 2003 के विश्व कप वाला नॉक, गिलक्रिस्ट की 2007 विश्व कप मैं परफॉर्मेंस ने बस हमे यही दिखाया की इस टीम में सिर्फ और सिर्फ महारथी ही हैं. जब कभी मैच हाथ से जा भी रहा होता तब ही दमियन मार्टिन या एंड्रयू साइमंड्स जैसे खिलाड़ी मध्य ओवर में खेल पर काबू पा लेते।
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गेंदबाज़ी की मशीन:
ब्रेट ली, ग्लेन मैकग्राथ और शेन वार्न एक समय पर, एक जगह पर और एक टीम में। आप सोचें की बल्लेबाज़ों की क्या हालत होती होगी। टेस्ट फ़ॉर्मेट हो या लिमिटेड ओवर का खेल। ये सिर्फ गेंद ही नहीं मुँह से भी काफी कुछ फेक देते थे जो बल्लेबाज़ के दिमाग में घुस जाता था। इन तीन दिग्गजों के बाद टीम में मिचेल जॉन्सन शामिल हुए और फिर कुछ सालों के लिए तो ऑस्ट्रेलिया की टीम का कोई मुक़ाबला नहीं रहा।
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